बाघ का सर कलम करने के बाद वह अपनी तलवार का खून साफ़ करने तथा अपने पाप धोने अपने कंधे पर बाघ का सर रखकर पुष्कर की पवित्र झील में स्नान करने गया . उस दिन पूर्णिमा
की रात थी और झील के दूसरे किनारे से एक ब्राह्मण युवती लीला सवरी मौजूद थी.उसने कभी उस झील पर किसी पुरुष को नहीं देखा था चांदनी रात होने के लीला को हरिराम की परछाई में शरीर तो मनुष्य का और सर बाघ का नज़र आया उसे बहुत आश्चर्य हुआ और उसने व्रत लिया कि वह उसी पुरुष से विवाह रचाएगी .
लेकिन हरिराम ने लीला से विवाह करने से इंकार कर दिया यह कहते हुए कि वह एक ब्राह्मण है और हरिराम एक क्षत्रिय .आखिर में राजा बैंसलदेव ने विवाह की अनुमति दे दी और हरिराम और लीला सवरी ने विवाह कर लिया . विवाह के नौ माह उपरान्त लीला ने एक बच्चे को जन्म दिया जिसका सर तो बाघ का था और धड़ मनुष्य का.इसलिए उस बालक का नाम रखा गया बाघसिंह.
जब बाघ सिंह बड़ा हुआ तो कोई नही युवती उससे विवाह करने तैयार न हुई . तब वह अकेला एक ब्राह्मण रसोइये के बगीचे में रहने लगा . एक दिन सावन तीज के त्यौहार पर बहुत युवतियां जो कि गुर्जर गोत्रों से सम्बन्ध रखती थी उस बगीचे में झूला झूलने आईं. लेकिन ब्राह्मण ने शर्त रख दी कि वे तभी झूला झूल सकती हैं जबकि वे बाघसिंह के साथ चक्कर लगाये.
युवतियां इस बात के लिए तैयार हो गई और बाघसिंह के साथ चक्कर लगाने लगीं जब वे चक्कर लगा रही थी तभी ब्राह्मण ने आवश्यक मंत्र पढ़ दिए और अनजाने ही वे युवतियां बाघसिंह के साथ बंधन में बंध गयीं .
और बाद में बाघसिंह ने उनमे से 12 युवतियों के साथ विवाह रचाया जिनका नाम था -कांता कलस, ज्ञानवंती कलस,लक्मदे राठोड़,जयंता सरदाना,लाली सरदाना ,बलमा सरदाना,बर्नवंती चाद, बिन्दका चाद ,धन्वन्तरी चेची ,गौरी चेची,रमा अवाना और बिंद्रा अवाना .और इन सभी युवतियों ने 2 - 2 संतानों (पुत्रों ) को जन्म दिया.जोकि बगडावत के 24 गुर्जर भाइयों के नाम से मशहूर हैं.
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